अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं

रविवार, 6 नवंबर 2022


 हिंदी विभाग के शोधार्थी पूजा, अरशदा तथा प्री. पीएच.डी. कोर्सवर्क के विद्यार्थी अभिषेक का जे.आर.एफ. और शोधार्थी पवन कुमार गोस्वामी को नेट उत्तीर्ण होने हुए। विभाग की ओर से बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं.....








रविवार, 13 मार्च 2022




दिनांक 13.03.2022 को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन ‘विदेशों में हिंदी शिक्षण एवं रोजगार’ सत्र का आयोजन किया गया।


आज दिनांक 13.03.2022 को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन ‘विदेशों में हिंदी शिक्षण एवं रोजगार’ सत्र का आयोजन किया गया। सत्र की अध्यक्षता प्रो0 वेदप्रकाश वटुक, वरिष्ठ साहित्यकार ने की। सत्र में मुख्य अतिथि प्रो0 रामप्रसाद भट्ट, हेमबर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी, विशिष्ट अतिथि पद्मश्री डॉ॰ तोमियो मिजोकॉमी, ओसाका विश्वविद्यालय जापान, डॉ0 संध्या सिंह, हिंदी विभागाध्यक्ष, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर, प्रो0 कुमुद शर्मा, निदेशक, हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय, दिल्ली शामिल रहे।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो0 वेदप्रकाश वटुक ने कहा कि देश विदेश में जितने भी संघर्ष भारतीयों ने किए वे सभी हिंदी के माध्यम से ही किए गए है। ‘गदर’ जैसा क्रांतिकारी अखबार, विदेशी धरती पर निकला जो हिंदी का समाचार पत्र था। आज ंिहंदी के नेता, कवि, पत्रकार सरकारी नीतियों का ही पिष्टपेषण कर रहे हैं। उनके काम में कोई मौलिकता नहीं है। हिंदी को यदि विश्व भाषा बनाना है तो हिंदी में विभिन्न विषयों में शोध, अध्ययन अध्यापन से संबंधित पत्रिकाओं का विकास करना होगा।
मुख्य अतिथि प्रो0 रामप्रसाद भट्ट ने कहा कि जर्मनी विश्व की बड़ी शक्तियों में से एक है। जर्मनी में बहुत पहले संस्कृत व्याकरण पर काम शुरू हो गया था क्योंकि जर्मनी भारतीय संस्कृति को समझना चाहता था। समय की पाबन्धी विकास के लिए मूल में निहित हैं। हमें समय का मूल्य समझना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि डॉ0 तोमियो मिजोकॉमि ने कहा कि जापान के राष्ट्रीय नाट्य विद्या के हिंदी नाटकों का मंचन ंिकया जाता है। जिसमें 1999 से अब तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा विश्व के अलग-अलग देशों में अनेकों नाटको का नाट्य मंचन किया जा चुका है। जिसके अन्तर्गत 2004 में भारत में भी मेरठ के साथ-साथ दिल्ली जैसे शहरों में जापानी कलाकारों द्वारा नाटकों का मंचन किया जा चुका है। आत्म विश्वास के साथ हिंदी के विकास में प्रगति कर सकते हैं। भारत संभावनाओं से भरा देश है। उसमें भाषा, बाजार, सभी ओर रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।
विशिष्ट अतिथि डॉ0 संध्या सिंह ने कहा कि सिंगापुर में भारतीयों की आबादी काफी है। हिंदी से जुड़े अनेक शिक्षण संस्थान सिंगापुर में हिंदी शिक्षण कर रहे हैं। अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में भी हिंदी में अध्ययन अध्यापन हो रहा है। 1989 से सिंगापुर में हिंदी शिक्षण हो रहा है। सिंगापुर की भाषाई नीति हिंदी शिक्षण के लिए सहयोगी है प्ब्ब्त् से हिंदी शिक्षण के संदर्भ में डवन भी साईन किया गया। यहाँ चीनी, मलय, भारतीय छात्र हिंदी के विद्यार्थी हैं। पाठ्य पुस्तके हिंदी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं जैसें बंगाली, गुजराती, उडिया आदि भाषाओं में भी उपलब्ध है। सिंगापुर में शिक्षण, अनुवादक, दुभाषिया और मंत्रालयों में भी ंिहंदी विद्यार्थियों के लिए रोजगार उपलब्ध हैं। नर्सिंग, यूट्यूबर, स्टैंडअप कामेडी आदि क्षेत्रों में भी रोजगार की पर्याप्त संभावनाऐं हिंदी भाषियों के लिए हैं।
विशिष्ट अतिथि डॉ0 कुमुद शर्मा ने कहा कि विदेशी कंपनियाँ भारत में व्यापार के लिए हिंदी भाषियों को महत्व देते है। आज हम विश्व बाजार से जुड़ गए है। बाजार के लिए विज्ञापन उपभोक्ताओं के बीच सेतु का काम करते हैं, इस लिए विज्ञापन स्वयं में एक बड़ा बाजार है। आज वही ज्ञान मजबूत है, जो एक बड़ा पैकेज दिला पाए, भाषा और बाजार का अन्त संबंध है। विदेशी कम्पनियों को यदि भारत से व्यापार करना है तो उन्हें यहाँ की भाषा में उतरना होगा। साथ ही यहाँ की संस्कृति को भी समझना होगा। हिंदी की ताकत से विश्व का बाजार बढ़ रहा है। अनुवाद और डबिंग में हिंदी भाषियों के लिए बहुत स्पेस है। विश्वस्तर पर विदेशी और स्वदेशी हिंदी पठन पाठन से जुड़े हैं। वर्तमान में अन्तरराष्ट्रीय होना जरूरी है, आपने वाले समय में विश्व की 10 बड़ी भाषाओं में हिंदी भी होगी।
सत्र का संचालन डॉ॰ विपिन कुमार शर्मा, लम्बगांव, उत्तराखण्ड ने किया।
इसी क्रम में संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र ‘हिंदी लेखन: अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य’ को आयोजित किया गया। सत्र की अध्यक्षता प्रो0 विभूति नारायण राय, पूर्व कुलपति, महात्मा गॉधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी वि0 वि0, वर्धा, ने की। मुख्य अतिथि, श्री रामदेव धुरंधर, वरिष्ठ साहित्यकार, मॉरीशस, सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ0 राकेश बी0 दुबे, विशेष कार्याधिकारी हिंदी, राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली, शमिल रहे।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो0 विभूति नारायण राय ने कहा कि आधुनिक भारत को समझना है तो भारतीय भाषाओं को समझना होगा। भारत की 50 प्रतिशत आबादी हिंदी बोलती है और 50 प्रतिशत आबादी हिंदी को समझती है। इसलिए हिंदी पूरे भारत की भाषा है। भारत में व्यापार की कंुजी हिंदी है। लगभग 200 देशों में हिंदी पढाई जा रही है। अनुवाद के क्षेत्र में रोजगार की पर्याप्त संभावनाऐं हैं। यह हिंदी पाठकों के लिए स्वर्ण युग है क्योंकि विश्व साहित्य से अच्छी रचनाओं का अनुवाद हो रहा हैं। अन्य भाषाएं रोजगार में हिंदी की सहयोगी हो सकती है।
मुख्य अतिथि डॉ0 रामदेव धुरंधर ने कहा कि हिंदी जहाँ भी गई वहाँ हिंदी को संस्कार के रूप में ग्रहण किया गया। हिंदी संस्कार की भाषा है। विदेशी में सर्वप्रभम हिंदी, भोजपुरी भाषा के रूप में आई। प्रवासी साहित्य में हिंदी में स्तरीय लेखन हो रहा हैं। कई लेखक बेहतरीन लेखन हिंदी में कर रहे हैं। प्रवासी साहित्य को समझने के लिए उसे अलग भावभूमि पर उतरकर उसे समझना होगा। 
विशिष्ट अतिथि डॉ0 राकेश बी0 दूबे ने कहा कि हिंदी का महत्व गांधी जी की उस अग्नि में संदर्भित होता है। जब उन्होंने कहा था कि ‘दुनिया से कह दो मैं अंग्रेजी भूल गया हूॅ।’ प्रवासी साहित्य ने हिंदी को विदेशों में सृजन की भाषा के रूप में प्रसारित-प्रचारित किया है। अनुवाद के क्षेत्र में भी विदेशों में पर्याप्त संभावनाएं हैं।
सत्र संचालन डॉ0 ललिता यादव, एसोसिएट प्रोफेसर, एन0ए0एस0 कॉलिज ने किया। 
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि राजभाषा होने के नाते शिक्षा नीति में हिंदी के लिए विशेष व्यवस्था होनी चाहिए। हिंदी शिक्षा माध्यम की भाषा होनी चाहिए।  
कार्यक्रम के समापन सत्र में पुरातन छात्र सम्मेलन का आयोजन किया गया। समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो॰ एच॰एस॰ सिंह, कुलपति, माँ शाकुम्भरी देवी विश्वविद्यालय, सहारनपुर रहे। उन्होंने कहा कि हिंदी विश्व भाषा है। संसार का ऐसा कोई कोना नहीं है। जहाँ हिंदी बोलने-समझने वाला न हो। आज का समय विश्व में भारतीयता कि मजबूत पहचान का समय है। ऐसे में हिंदी भाषा का महत्व विश्व स्तर पर बढ़ जाता है। जो हिंदी भाषीयों के लिए रोजगार के नए नए रास्ते बनाता है। 
विशिष्ट अतिथि डॉ॰ अमर नाथ अमर ने हिंदी विभाग के विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया और मीडिया क्षेत्र मंे रोजगार के अवसरों की जानकारी दी।
कार्यक्रम में जिसमें हिंदी विभाग के विद्यार्थियों कीर्ति, आयूषी, अर्पूवा, प्रियंका, पारूल, निकुंज ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दी। पुरातन छात्र सम्मेलन एवं समापन सत्र का संचालन डॉ॰ विवेक सिंह और डॉ॰ अंजू ने किया। इस अवसर पर विभाग के पुरातन और नवीन विद्यार्थी शामिल रहे। 
आज के कार्यक्रम में डॉ॰ रेखा चौधरी, डॉ॰ कृष्णा देवी, डॉ॰ यासमीन, डॉ0 असलम खान, डॉ॰ उमा, डॉ॰ ममता, डॉ0 अमित कुमार, डॉ0 सुमित नागर, डॉ0 मोनू सिंह, डॉ॰ आंचल, डॉ0 राजेश कुमार, डॉ0 विद्यासागर सिंह, डॉ0 प्रवीन कटारिया, डॉ0 आरती राणा, डॉ0 यज्ञेश कुमार, दिनेश कुमार, हरेन्द्र कुमार, डॉ॰ प्रगति, दीक्षित कुमार, पुष्पेन्द्र, नेत्रपाल, पिन्टु, सुनील कुमार, दुर्गेश, रीना, मोहनी कुमार, पूजा, विनय, पूजा यादव, सचिन, उपेन्द्र आदि उपस्थित रहे।













































शनिवार, 12 मार्च 2022

 दिनांक 12 मार्च 2022 को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘हिंदी की अन्तरराष्ट्रीयता एवं रोजगार की संभावनाएं’ का शुभारम्भ बृहस्पति भवन में किया गया।





























 


 







































हिंदी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ


आज दिनांक 12 मार्च 2022 को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘हिंदी की अन्तरराष्ट्रीयता एवं रोजगार की संभावनाएं’ का शुभारम्भ बृहस्पति भवन में किया गया।
उद्घाटन सत्र ‘हिंदी की अन्तरराष्ट्रीयता और रोजगार की संभावनाएं’ की अध्यक्षता माननीय प्रति कुलपति प्रो0 वाई0 विमला ने की। मुख्य अतिथि श्री अनिल जोशी, उपाध्यक्ष केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, विशिष्ट अतिथि डॉ0 बीना शर्मा, निदेशक, केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, विशिष्ट अतिथि प्रो0 सत्यकाम, समकुलपति, इग्नू, नई दिल्ली, विशिष्ट अतिथि प्रो0 रामप्रसाद भट्ट, आचार्य, हेम्बर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी शामिल रहे। 
प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग में सभी अतिथियों एवं विषय विशेषज्ञों का स्वागत किया। स्वागत भाषण में प्रो॰ लोहनी ने कहा कि हम तकनीक में पिछड़े हैं। ंिहंदी फॉण्ट को लोकप्रिय नहीं बना पाए हैं। हिंदी को विज्ञान की भाषा नहीं बना पाए। सरकारी नीतियों में भाषा संबंधी प्रयास भी कम है। नई शिक्षा नीति में हिंदी को लेकर कोई विशेष कार्य हिंदी क्षेत्र मंें नहीं हो पाया है। आजादी के 75 वर्षों में जो विकास होना चाहिए था, वह नहीं हो पाया। हिंदी को भारत में पहले लोकप्रिय होना चाहिए। विश्व भाषा की चर्चा बाद का प्रश्न है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो0 वाई0 विमला ने कहा कि हिंदी की स्थिति वही है जो हमने बनाया है। ये हमारे प्रयासों का ही परिणाम है। विश्व के 80 प्रतिशत देशों में हिंदी को बोला समझा जा सकता है। हिंदी वहीं होगी जैसा उसे बनाऐंगे। हिंदी संस्कृत की पुत्री है इसलिए संस्कृत का साहित्य हिंदी में विलय हो गया है। हिंदी का बोलीगत रूप हर दिशा में विद्यमान है। हिंदी भारत की राजभाषा है इसलिए इसका आदर करना और कराना दोनों ही जरूरी है।
मुख्य अतिथि श्री अनिल जोशी ने कहा कि हिंदी वहाँ है जहाँ भारतीय डायस्पोरा है। फिजी की रामायण मण्डलियों ने 80 से 90 प्रतिशत स्कूलों को चलाया है। हिंदी की अन्तराष्ट्रीयता प्रवासी सहित्य, नृत्य, संगीत, हिंदी फिल्मों में परिलक्षित होता है, हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता विदेशों में चरम पर है। नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को वह महत्व मिला है, जिसकी वे अधिकारिणी हैं। ज्ञान पद्धतियों और शिक्षा नीतियों में जीवन मूल्यों का प्रश्न, भाषा का प्रश्न है। भाषा, मात्र भाषा नहीं यह जीवन मूल्यों, रोजगार की भाषा है। अंग्रेजी हमारी शक्ति बने, हमारी बैसाखी नहीं। 
विशिष्ट अतिथि डॉ0 बीना शर्मा ने कहा कि हिंदी मात्र साहित्य और संस्कार की भाषा नहीं बल्कि रोजगार की भाषा भी है। समर्थ अभिव्यक्ति रोजगार दिलाती है। हिंदी में रोजगार की अनंत संभावनाएं हैं। हमारे पाठ्यक्रम रोजगारपरक होने चाहिए। भाषाई कौशलता के विकास के बिना रोजगार की संभावनाएं सृजित नहीं होगी।
विशिष्ट अतिथि प्रो0 सत्यकाम ने कहा कि ऑनलाईन जीवन शैली ने हमारे सुनने के कौशल को प्रभावित किया है। हिंदी भी देश से बाहर मजदूर और किसानों के साथ गिरमिटिया मजदूरों के रूप में गई। वहीं प्रवासी हिंदी साहित्य के रूप में हिंदी साहित्य के सम्मुख है। मॉरीशस भारतीय संस्कृति का तीर्थ है। भारतीय पौराणिक पात्रों के आधार पर अंग्रेजी में सबसे ज्यादा लिखा जा रहा है। अंतराष्ट्रीयता के संदर्भ में हिंदी को भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि के तौर पर देखना चाहिए। नई शिक्षा नीति भारत की पहली शिक्षा नीति है जिसमें पहली बार मातृभाषा में ज्ञानार्जन का प्रस्ताव हैं। यह स्वयं में एक क्रांतिकारी कदम है। हिंदी जन भाषा है। प्रधान मंत्री जब देश से बाहर हिंदी बोलते हैं तो वे भारत को बोल रहे होते है। अपनी पूर्ण अस्मिता के साथ हिंदी बाजार की भी भाषा है। अंग्रजी शब्दों का प्रयोग हिंदी की अस्मिता के लिए कोई खतरा नहीं बल्कि उसकी व्यापकता की विशेषता है। मशीनी अनुवाद 70-80 प्रतिशत तक सही हो रहा है। हिंदी बहुत लचीली भाषा है।
विशिष्ट अतिथि प्रो0 रामप्रसाद भट्ट ने कहा कि भाषा संस्कृति, समाज, भूगोल की प्रतिनिधि है। हिंदी का दायरा बहुत विशाल है, उसे समझने के लिए विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है। हिंदी की शब्द सम्पदा का संरक्षण, प्रयोग को बढाया देने की आवश्यकता है। औद्योगिक क्षेत्र में हिंदी जानने, समझने वालो की आवश्यकता है। हिंदी की संप्रेषण क्षमता बड़ी मजबूत है। भारतीय प्रधानमंत्री के यूरोपिय दौरों में हिंदी प्रयोग से विदेशों में हिंदी के प्रति सम्मान बढ़ा है।
उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ0 नरेन्द्र मिश्र, आई0 आई0 एम0 टी0 विश्वविद्यालय, मेरठ ने किया।
संगोष्ठी का दूसरा सत्र ‘भारतीय भाषाएं हिंदी और नई शिक्षा नीति’ पर केन्द्रित रहा। दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रो॰ बीना शर्मा, निदेशक, केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा ने की मुख्य अतिथि प्रो॰ सविता मोहन, पूर्व निदेशक, उच्च शिक्षा निदेशालय, उत्तराखण्ड, विशिष्ट अतिथि प्रो॰ प्रदीप कुमार मिश्रा, निदेशक, सी॰पी॰आई॰एच॰ई॰ नीपा, नई दिल्ली, विशिष्ट अतिथि प्रो॰ नरेश मिश्र, पूर्व विभागाध्यक्ष, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा उपस्थित रहे। 
सत्र की अध्यक्षता प्रो0 बीना शर्मा, निदेशक, केन्द्रीय हिंदी संस्थान ने की।
सत्र की मुख्य अतिथि प्रो0 सविता मोहन ने कहा कि भाषा सत्ता से जुड़ी रहती है। अंग्रेजों की शिक्षा नीति और भाषागत नीतियॉ आज भी व्यवहार में लाई जा रही है। नई शिक्षा नीति में यह परिवर्तन हुआ और स्थानीय भाषाऐं, मातृ भाषाऐं शिक्षण के केन्द्र में आई। जापान अपनी मातृभाषा में शिक्षण के बल पर विश्व में तकनीकी विकास किया। इस देश में आप शैक्षिक स्तर पर वर्ण व्यवस्था की परम्परा चल रही। जिसे हमें बदलना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि डॉ0 प्रदीप कुमार मिश्रा ने कहा कि भारत की नई शिक्षा नीति रोजगार परक है और भाषा उसकी माध्यम हैं। हिंदी में अपनी जड़ों से जुडकर ही विकास किया जा सकता है। आधुनिक प्रविधियों से जुड़कर ही हिंदी का विकास होगा और रोजगार सृजित होंगे। नई शिक्षा नीति की अभी और अधिक व्याख्या और विश्लेषण की आवश्यकता है।
विशिष्ट अतिथि प्रो॰ नरेश मिश्र ने कहा कि मातृभाषा बड़ी ताकतवर है जिसमें जोर नहीं लगाना पड़ता है। हिंदी शब्द सागर 11 खण्डों में नागिरी प्रचारिणी सभा ने प्रकाशित किया है। हिंदी में स्वाभिमान तभी जागृत होगा जब हिंदी की उच्चारणिक सिद्धांतों की जानकारी होगी।    
संगोष्ठी में शोध पत्रों की प्रस्तुति सत्र में कु0 प्रतिभा, ममता चावडा, डॉ0 निकेता, सविता, डॉ0 कल्पना महेश्वरी ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम में डॉ॰ वंदना शर्मा, डॉ॰ कविता त्यागी, डॉ॰ रामयज्ञ मौर्य, डॉ॰ असलम खान, डॉ॰ दिनेश कुमार, डॉ0 राजेश कुमार, डॉ0 विपिन शर्मा, डॉ0 विद्यासागर सिंह, डॉ0 प्रवीण कटारिया, डॉ0 अंजू, डॉ0 आरती राणा, डॉ0 यज्ञेश कुमार, डॉ0 योगेन्द्र सिंह, दीपा, मोहनी कुमार, कु0 पूजा, विनय कुमार, प्रगति, पूजा यादव, रीना, डॉ0 उमा उपाध्याय, नितिन कुमार सचिन, उपेन्द्र, वसीम खान, स्वाति, अंजलि, काजल, राधा, शिवम, शिवानी, आयुषी, प्रियंका, निकुंज, आदि उपस्थित रहे।